गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीकृष्ण बाल-माधुरी श्रीकृष्ण बाल-माधुरीसुदर्शन सिंह
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प्रस्तुत पुस्तक में श्रीकृष्ण-बालमाधुरी में सूरसागर के 335 पदों का संग्रह है इसमें श्रीकृष्णचन्द्र की शिशु लीला के मधुर मन्जुल पद है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
नम्र निवेदन
श्रीसूरदासजी हिन्दी-साहित्य-गगन के सूर्य तो हैं ही, बाल-वर्णन के
क्षेत्र में भी सम्राट हैं-यह बात सर्वमान्य है। उसके दिव्य नेत्रों के
सम्मुख उनके श्यामसुन्दर नित्य क्रीड़ा करते हैं। सूर कल्पना नहीं करते,
वे तो देखते हैं और वर्णन करते हैं। इसीलिये उनकी वाणी इतनी सजीव है, इतनी
ललित है, इतनी मर्मस्पर्शिनी है।
अनन्त-सौन्दर्य-माधुर्यघन श्रीश्यामसुन्दर की बाल माधुरी का वर्णन जो सूर की सरस वाणी से हुआ है, रस का सर्वस्व-सार है। उसका गान करके वाणी पवित्र होती है, उसका चिन्तन करके हृदय परिशुद्ध होता है, उसके श्रवण से श्रवण सार्थक हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण-बालमाधुरी में सूरसागर के 335 पदों का संग्रह है। इसे श्रीकृष्णचन्द्र की शिशु-लीला के मधुर मंजुल पद ही लिये गये हैं।
पदों का सरल भावार्थ दिया गया है तथा अन्त में पदों में आये मुख्य कथा प्रसंग दे दिये गये हैं। प्रारम्भ में पदों की अकारादि क्रम से सूची भी दे दी गयी है।
पदों के पाठ तथा भावार्थ करने में कोई त्रुटि रही हो तो सूचना मिलने पर उसे आगामी संस्करण में सुधारा जा सकेगा।
आशा है यह सानुवाद संग्रह सभी साहित्य-प्रेमियों, सूर-साहित्य के अध्ययन करने वालों को प्रिय होगा। भगवान् श्रीश्यामसुन्दर के प्रियजनों को तो प्रिय होगा ही और वे इसे पाकर प्रसन्न होंगे।
अनन्त-सौन्दर्य-माधुर्यघन श्रीश्यामसुन्दर की बाल माधुरी का वर्णन जो सूर की सरस वाणी से हुआ है, रस का सर्वस्व-सार है। उसका गान करके वाणी पवित्र होती है, उसका चिन्तन करके हृदय परिशुद्ध होता है, उसके श्रवण से श्रवण सार्थक हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण-बालमाधुरी में सूरसागर के 335 पदों का संग्रह है। इसे श्रीकृष्णचन्द्र की शिशु-लीला के मधुर मंजुल पद ही लिये गये हैं।
पदों का सरल भावार्थ दिया गया है तथा अन्त में पदों में आये मुख्य कथा प्रसंग दे दिये गये हैं। प्रारम्भ में पदों की अकारादि क्रम से सूची भी दे दी गयी है।
पदों के पाठ तथा भावार्थ करने में कोई त्रुटि रही हो तो सूचना मिलने पर उसे आगामी संस्करण में सुधारा जा सकेगा।
आशा है यह सानुवाद संग्रह सभी साहित्य-प्रेमियों, सूर-साहित्य के अध्ययन करने वालों को प्रिय होगा। भगवान् श्रीश्यामसुन्दर के प्रियजनों को तो प्रिय होगा ही और वे इसे पाकर प्रसन्न होंगे।
विनीत
प्रकाशक
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